मेरी शादी 24 जनवरी को हुई थी, और उस दिन की ठंड इतनी ज्यादा थी कि गुलाब जामुन और नान तक ठंडे होकर पत्थर जैसे हो गए थे। मैं बिहार से हूं,
मेरी शादी 24 जनवरी को हुई थी, और उस दिन की ठंड इतनी ज्यादा थी कि गुलाब जामुन और नान तक ठंडे होकर पत्थर जैसे हो गए थे। मैं बिहार से हूं,
मेरी शादी 24 जनवरी को हुई थी, और उस दिन https://t.me/Raj_Technical0की ठंड इतनी ज्यादा थी कि गुलाब जामुन और नान तक ठंडे होकर पत्थर जैसे हो गए थे। मैं बिहार से हूं, और हमारे यहां शादी के तुरंत बाद सुहागरात का कोई रिवाज नहीं होता। पहले कई पारंपरिक रस्में निभाई जाती हैं, जिनमें से एक बेहद खास रस्म होती है **"कंगन छुड़ाई।"** इस रस्म के बाद ही पति-पत्नी के करीब आने की अनुमति मानी जाती है।
शादी के दौरान मायके की ओर से भेजा गया शानदार फर्नीचर और नया बेड हमारे कमरे में लगाया गया था। बढ़िया **Dunlop** के गद्दे पर खूबसूरत सेज सजाई गई थी। सारी रस्मों के खत्म होते-होते काफी देर हो गई, और आखिरकार वह पल आ ही गया, जब मुझे अपने पति के साथ समय बिताने का मौका मिलने वाला था।
रात के करीब 10 बज चुके थे, घर में गहरा सन्नाटा था। जैसे ही हम कमरे में दाखिल हुए, खूबसूरत सजी सेज देखकर मन बेहद प्रसन्न हुआ। लेकिन जैसे ही हम दोनों करीब आए, गद्दे से अचानक "चीबड़-चिबड़" की आवाजें आने लगीं। पहले तो समझ नहीं आया कि यह आवाज कहां से आ रही है, फिर एहसास हुआ कि गद्दे पर लगी प्लास्टिक कवर अभी तक हटाई नहीं गई थी। हर हरकत पर गद्दा इतनी जोर से आवाज कर रहा था कि हमें लगा घर के बाकी सदस्यों को भी सुनाई दे रही होगी।
हम दोनों ने यह सोचकर हंसते-हंसते एक-दूसरे को देखा कि कहीं घरवालों को इस शोर से हमारी मौजूदगी का अंदाजा न लग जाए। इसलिए हमने पूरी रात बस लेटे-लेटे बातें करते हुए गुजार दी, इस उम्मीद में कि शायद घरवाले सो जाएं, तो हम आराम से कुछ समय साथ बिता सकें।
रात के करीब 3 बजे जब हमें लगा कि अब पूरा घर गहरी नींद में सो चुका होगा, हमने थोड़ा करीब आने की कोशिश की। मगर तभी दरवाजे के बाहर से भाभी की आवाज आई, **"सो जाइए, अब तो पूरी जिंदगी पड़ी है। बहुत समय है। बाहर तक सब सुनाई दे रहा है!"**
यह सुनते ही मैं शर्म से लाल हो गई, और बिना कुछ हुए ही हमारी सुहागरात खत्म हो गई। पति ने हंसते हुए मेरा हाथ थाम लिया और कहा, **"चलो, ये रात बातें करने में ही सही, लेकिन हमेशा यादगार रहेगी!"**
अगली सुबह जब हमने दरवाजा खोला, तो सामने भाभी खड़ी थीं। उनके चेहरे पर एक शरारती मुस्कान थी। उन्होंने मेरी ओर देखा और हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, **"रात अच्छी रही?"** मैं भी मुस्कुरा दी, लेकिन मन में सोच रही थी कि यह मुस्कान उस बात के लिए है जो कभी हुई ही नहीं।
आज जब भी उस रात को याद करती हूं, तो हंसी रोक पाना मुश्किल हो जाता है। वो अनूठी रात, जो बिना किसी सुहागरात के ही बीत गई, हमारे रिश्ते की सबसे मजेदार यादों में से एक बन गई है। अब हम जब भी इस वाकये को याद करते हैं, तो खूब हंसते हैं और सोचते हैं कि शादी की शुरुआत ही इतनी मजेदार थी, तो आगे का सफर कितना खूबसूरत होगा।
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